ख्वाबों को पलते हुए देखा
इन्ही आंखो से
ख्वाबों को जलते हुए देखा
कभी भीड से गुजरे, कभी तन्हाई से
हर वक्त आंखो से मलते हुए देखा
इन्ही आंखो से
खाबों को ढलते हुए देखा
जब सँवरे तो लगे कि आईने जवान से हुए
टूटे तो जैसे काँच को चूभते हुए देखा
एक उम्मीद से थे वो
या कहो, जीने की वज़ह
करवट जो बदल दी तो खलते हुए देखा
इन्ही आंखो से
ख्वाबों को निगलते हुए देखा
कभी सिकुड के दब जाते थे साँसो के रास्ते
बौखलाये कभी तो आहो मे उबलते हुए देखा
वक्त के हर मोड पर थम से गये
यूँ कहो कि जम से गये
कदमो के निशानो से फिसलते हुए देखा
इन्ही आंखो से
खाबों को गलते हुए देखा
इन्ही आंखो से…